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आस / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
इस बहके से मौसम, मितवा
बहकी-सी
मनुहार तो हो
थिरक रहा है केकी, किंतु
सखा कहीं पे
पास तो हो
नहीं पास में यदि पियरवा
आने की कुछ
आस तो हो