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आहटें / मधुप मोहता

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मैंने सोचा कि लो आप आ ही गए,
ऐसे रूक-रूक के आती रहीं आहटें।
आप आते न आते सहर आ गई,
रात भर हम बदलते रहे करवटें।

जाम-ओ-मीना में बस तिश्नगी रह गई,
लाल आंखों में बाकी रहीं हसरतें।
दिल के हिस्से में आई कुछ इक तल्ख़ियां,
और बिस्तर में बाकी रही सलवटें।