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आहत मन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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1
सूली पर लटकी
पल पल मरती आशा
तुमने कहा-रिश्ते।
2
तेरे-मेरे बीच
मीलों का फ़ासला
फिर भी साथ हैं हम।
3
साथ रहना हुआ
रात दिन बरसों
पहचान कभी
हो न सकी।
4
हवा चली
पतझर में टूटा पत्ता
कहाँ गिरा क्या पता
हुआ लापता।
5
तुमको चाहा
उम्र के समन्दरों के पार
कब मिले?
6
मेरा बेचैन मन
बेवज़ह गीली आँखें
लगता आज तुम
बहुत रोए होगे।
7
नुकीले नंगे पहाड़
खड़ी चढ़ाई
दिन रात चले
घायल तन
आहत मन।