भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आहे, राजा जी बगिया मे घन फुलबरिया / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

राम बगीचे में झूले पर झूलते हैं। वहाँ सीता भी जाती है। दोनों एक दूसरे के प्रति आकृष्ट हो जाते हैं। सीता घर आती है। उसक व्यवहार को देखकर उसकी माँ को कुछ शंका होती है। वह सीता से पूछती है। सीता उत्तर देने में लजाती है, फिर भी वह इतना कह ही देती है- ‘माँ, लज्जा की बात कही नहीं जाती। राम बगीचे में झूला झूल रहे थे। हम दोनों में पारस्परिक प्रेम हो गया है।’ माँ आशीर्वाद देती है‘ ‘तुम्हें राम की गोद में बैठने और अयोध्या का राज्य भोगने का सौभाग्य प्राप्त हो। मेरी शुभकामना तुम्हारे साथ है।’ माँ हमेशा अपनी संतान की शुभकामना ही चाहती है।

आहे, राजा जी बगिया में घन फुलबरिया, लागलन मधुरिया<ref>मधुर का पेड़; अमरूद</ref> के गाछ हे।
तहिं तर सीरी रामजी खेलथिन हिरोलबा<ref>झूला; हिंड़ोला</ref> सीता सेॅ लागलन पीरीत हे॥1॥
आहे, खेलिय धूपिय जबे लौटल सीता, अम्माँ पूछै समुझाय हे।
आहे, लाजो के बात अम्माँ कहलो न जाय, कैसे कहब समुझाय हे॥2॥
आहे, राजा दसरथ जी के घन फुलबरिया, लागलन मधुरिया के गाछ हे।
आहे, तहि तर सीरी रामचंदर खेलथिन हिरोलबा, सीता से लागलन पीरीत हे॥3॥
आहे, जइहा<ref>जाना</ref> हे सीता सीरी रामजी के जँघिया, भोगिहऽ अजोधा ऐसन राज हे॥4॥

शब्दार्थ
<references/>