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आहो मौरिया पेन्हैत रामजी छगुनै / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

विवाह के लिए ससुराल जाते समय दुलहा मन ही मन उदास हो रहा है कि कोई मेरे साथ नहीं जा रहा है, मैं वहाँ के गढ़ को कैसे तोडूँगा? उसके घर वाले तथा सभी संबंधी आश्वासन देते हैं कि हम लोग तुम्हारे साथ रहेंगे तथा सब लोग मिलकर गढ़ तोड़ डालेंगे।
इस गीत में कन्या-हरण करके विवाह करने तथा उसके लिए युद्ध में विजयी होने का उल्लेख है।

आहो मौरिया पेन्हैत रामजी छगुनै<ref>दुःखी होना, उदास होना; छह-पाँच करना</ref>, केउ न<ref>कोई नहीं</ref> जायत सँग साथ हे।
कैसे गढ़ तोरैब हे॥1॥
अहे हथिया चढ़ल बाबा बिहुँसै, आहे हमहिं जायब सँग साथ।
कंचन गढ़ तोरैब हे॥2॥
चन्नन करैतेॅ रामजी छगुनै, केउ न जायत सँग साथ।
कैसे गढ़ तोरैब हे॥3॥
अहे, खड़का<ref>खड़खड़िया; बड़ी पालकी, जिसमें दोनों तरफ दरवाजे बने होते हैं और चारां ओर से बंद रहता है। आकार प्रकार के अनुसार इसे चार से आठ तक कहार ढोते हैं</ref> चढ़ल चाचा बिहुँसै, आहे हमाह जायब सँग साथ।
कंचन गढ़ तोरैब हे॥4॥
सिकड़ी पेन्हैत रामजी छगुनै, केउ न जायत सँग साथ।
कैसे गढ़ तोरैब हे॥5॥
अहे, घोड़बा चढ़ल भैया बिहुँसै, आहे हमहिं जायब सँग साथ।
कंचन गढ़ तोरैब हे॥6॥
जोरबा<ref>दुलहे के पहनने का एक वस्त्र, जिसका नीचे का भाग घेरावदार और ऊपर का काट बगलबंदी जैसा होता है</ref> पेन्हैते रामजी छगुनै, केउ न जायत सँग साथ।
कैसे गए़ तोरैब हे॥7॥
एक्का<ref>टमटम</ref> चढ़ल बाबू साहेब बिहुँसै, आहे हमहिं जायब सँग साथ।
कंचन ढ़ तोरैब हे॥8॥
मोजबा पेन्हैते रामजी छगुनै, केउ न जाएत सँग साथ।
कैसे गढ़ तोरैब हे॥9॥
आहे, गड़िया<ref>बैलगाड़ी पर</ref> चढ़ल फूफा बिहुँसै, आहे हमहिं जायब सँग साथ।
कंचन गढ़ तोरैब हे॥10॥
अहे, पालकी चढ़ैते रामजी छगुनै, केउ न जायत सँग साथ।
कैसे गढ़ तोरैब हे॥11॥
अहे, किस्त<ref>जूआ, द्यूत</ref> खेलैते बहनोइया, बिहुँसै, अहे हमहिं जायब सँग साथ।
कंचन गढ़ तोरैब हे॥12॥

शब्दार्थ
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