आह्वान / कुंदन अमिताभ
देखऽ छै आपनऽ अंग जीर्ण-शीर्ण
मायूसी मरघट कण-कण सें विकीर्ण।
हुंकार विलुप्त छै, सगरे खाली मर्मर
सुन्न सपाट नै हुऐ छै पत्तो मे ंखर्खर।
होलऽ छै इ अंग देश अखनी विकला
पीठ छै मौजूद मगर गायब पिंगला।
सरहपा, शुभद्रांगी केरऽ धरती परती
बसलऽ यहाँ अँधियारा बस्ती-बस्ती।
जहाँकरऽ अमर प्रेमी युगल लखीन्द्र बिहुला
जहाँ रचलकै दानऽ के दानवीर कर्णें लीला।
छै प्रसिद्ध चौरासी सिद्ध जहाँकरऽ ओरे नै
दीपंकर ऐन्हऽ विद्वान जहाँ कत्तेॅ छोरे नै।
आंगिरस, बुद्ध महावीर, चैतन्य
गुरूनानक, हुमायूँ, वासुपूज्य
बिम्बसार, मीरकासिम, शाहजहाँ
अकरब, शेरशाह, शाहशुजा
काजी रजीउद्दीन, महर्षि अरविंद
तिलकामाँझी, नंदलाल बसु
महादेवी, शरतचंद्र, दिनकर
रेणु, हंस आरो अशोक कुमार।
केकरऽ केकरऽ नै रहलै कर्मभूमि
महाभारत सें जुड़लऽ इ पुण्यभूमि
ईसा पूर्व काल में भारत आरो अंग,
अंगिका के मान बढ़ाबै वाला
सुवर्ण भूमि आरो सुवर्णद्वीप में
ढेरे उपनिवेश बसाबै वाला
ओहेॅ क्रम में चम्पा, अंगद्वीप, पाहो अंग,
कनतोली के नींव पारै वाला।
जे करतै ऐकरऽ विवशता केॅ अंगीकार
जे हरतै भाषा के पीड़ा हाहाकार
के छेकै अंगज अंग केरऽ?
के अंजन एकरऽ नैन केरऽ?
सहस्त्रों पूत के जननी मूक जेना अर्ण
की ऐतै जनम लेतै फेरू वहेॅ कर्ण?
सागर थीर छै सरंग चुपचाप
एतै अंधर भेॅ रहलऽ छै पदचाप।
रहेॅ नै अब अंग देश ठाठर
हुअेॅ नै कोय अंगवासी कातर
छिड़तै जहिया अबेॅ भीषण जंग
भरतै तहिये अंग केरऽ-अंग।