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आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

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इधर नेहरू, उधर चाऊ एन लाई
हिन्दी-चीनी भाई-भाई
नारा लगाया जा रहा था
पीठ में छुरा चुभाया जा रहा था
खून के आँसू हिमालय रो रहा था
काइसलाश की चोटी भरी हुँकार
गंग की धारा गरज कर बह रही थी
हो गया घायल हिमालय कह रही थी
सेना बहादुरी से हंटी पीछे...
जवानी का था खून खौला
अनायास ‘अनपढ़’ के हृदय से
निकाल कर कविता...
करने लगी आहवान