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आह्वान / शिवदेव शर्मा 'पथिक'

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नाव बढ़े तो सागर का भी पाकर रहे किनारा,
पाँव बढ़े तो युगमानव को मिले प्रगति का नारा,
गाँव बढ़े तो रामराज का सपना सच हो जाए,
छाँव बढ़े तो लू लपटों से बचकर पंथी जाए!

पाँव बढ़ा दे! पग चिन्हों में बोल उठे युगवाणी,
तार चढ़ा दे! सृजन वीण पर थिरके कविता रानी,
एक नया युगपथ कवि की साधना बनानेवाली,
कविता का श्रमदान बिखेरे पथ-पथ जीवन लाली!

सफल बने श्रम युग के कवि का आज इसे गाने दो,
जर्जर कुटियों में महलों के कोष उतर जाने दो,
थिरके पुनर्विहान लगाकर 'बढ़ा पाँव' का नारा,
निर्मोही नयनों से निकले पावन करुणा धारा!

बढ़ा पाँव का नारा युग को नई दिशा मिलने दो,
जगे नई पीढ़ी की कलियाँ, नए फूल खिलने दो,
'बढ़ा पाँव आगे' का राही नई चेतनावाला,
करता है आह्वान ज्योतिपथ का कोई मतवाला!