आह्वान : शिव और पार्वती / ओक्ताविओ पाज़
शिव और पार्वती :
हम तुम्हें पूजते हैं
देवताओं की तरह नहीं
बल्कि मनुष्य में देवत्व की
प्रतिमाओं की तरह ।
तुम वह हो जो मनुष्य बनना चाहता है और है नहीं,
मनुष्य जो होगा
कठोर परिश्रम की सज़ा काट लेने के बाद ।
शिव:
तुम्हारी चार भुजाएँ चार नदियाँ हैं,
जल की चार तेज धाराएँ।
तुम्हारा पूरा अस्तित्व ही एक उत्स है
जल का
जहाँ प्यारी पार्वती स्नान करती है,
जहाँ वह एक मनोहर नाव की तरह डोलती है ।
समुद्र धड़क रहा है सूर्य के नीचे :
यह शिव के विराट अधर हैं हँसते हुए;
समुद्र ज्वलन्त है :
यह जल पर पार्वती के पाँव हैं ।
शिव और पार्वती :
वह स्त्री जो मेरी पत्नी है
और मैं
तुमसे कुछ नहीं माँगते, कुछ नहीं
जो किसी दूसरे लोक से आता है :
सिर्फ़
समुद्र पर प्रकाश,
सो रही भूमि और समुद्र पर नंगे पाँव वाला प्रकाश ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : चन्दन सिंह