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आह्वाहन / नीता पोरवाल
Kavita Kosh से
प्रिये!
ढूँढो
खुद को
जैसे झुंड में
ढूँढ लेती है गाय बछड़े को
पुकारो
खुद को
जैसे पुकारती है पत्तियाँ
मेघों को
जगाओ
खुद को
जैसे नरम पंजों से
जगाते हैं पंछी पेड़ों को
चाहती हूँ मैं
तुम हांके जाओ
सिर्फ़
अपनी ही छड़ी से!!