आह किस तरह तिरी राह मैं घेरूँ कि कोई
सद्दे-रह हो न सके उम्र चली जाती का
ये कहा शैख़ ने शैताँ से कि आ, हमसे मिल
आशना मत हो तू ’सौदा’ से ख़राबाती का
कहा उनने कि है मेरी तो सआदत इसमें
लेक है ख़ौफ़ मुझे आपकी बदज़ाती का
आह किस तरह तिरी राह मैं घेरूँ कि कोई
सद्दे-रह हो न सके उम्र चली जाती का
ये कहा शैख़ ने शैताँ से कि आ, हमसे मिल
आशना मत हो तू ’सौदा’ से ख़राबाती का
कहा उनने कि है मेरी तो सआदत इसमें
लेक है ख़ौफ़ मुझे आपकी बदज़ाती का