भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आह प्यार ! / रॉबर्ट क्रीली
Kavita Kosh से
मेरा प्यार एक नाव की तरह
तैरता
मौसम पर, पानी पर .
वह एक शिला है
समन्दर की तलहटी पर.
वह है हवा पेड़ों के बीच ।
मैं उसे पकड़ता हूँ
अपने हाथों
और उसे उठा नहीं सकता,
कुछ नहीं कर सकता उसके बिना । आह प्यार !
धरती पर किसी और चीज़-सा नहीं ।