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आह मीठी-सी / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
होंठों पर आई उड़कर,
लट जो उसने हटाई थी।
ठुड्डी पर उँगली रखकर
मैं धीरे से मुस्कराई थी।
आह मीठी- सी भरकर,
ली साँझ ने अँगड़ाई थी।
दिन सोया आँखें मूँदकर,
साँझ की चुनर लहराई थी।
माँगी तारों को तककर,
प्रार्थना वह मनचाही थी।
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