भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आह मैं बे-क़रार किस का हूँ / मीर 'सोज़'
Kavita Kosh से
आह मैं बे-क़रार किस का हूँ
कुश्ता-ए-इंतिज़ार किस का हूँ
तीर सा दिल में कुछ खटकता है
देखियो मैं शिकार किस का हूँ
दिल है या मैं हूँ मैं हूँ या दिल है
और अब हम-किनार किस का हूँ
चैन आता नहीं मुझे यारो
दिल-ए-पुर-इजि़्तरार किस का हूँ
चाक है मिस्ल-ए-गुल तमाम बदन
या रब इतना फ़िगार किस का हूँ
‘सोज़’ मैं जो कहा कहाँ था यार
बोला चल-बे मैं यार किस का हूँ