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आ और आ के हाले-दिले-बेक़रार सुन / अनु जसरोटिया

आ और आ के हाले-दिले-बेक़रार सुन
दिल याद तुझ को करता है बे इख्तियार सुन

मायूसियों को छोड़ के तू चल हवा के साथ
क्या कह रहा है राह का उठ कर ग़ुबार सुन

कहता है कुछ तो करता है कुछ और ही बशर
बातों का इस की कुछ भी नहीं एतबार सुन

बर्बाद हो न जाये कहीं ये घड़ी ये पल
सुनने की जो है बात उसे बार बार सुन

जब से लगी है दिल को मुलाक़ात की लगन
दिल पर नहीं है हम को कोई इख्तियार सुन

अटकी है नाव मेरी भँवर में तू पार कर
परवरदगार, ऐ मिरे परवरदगार सुन

सारे ही ग़म भुला के ज़रा हँस ले चार दिन
क्या कह रहे हैं फूल तुझे, एक बार सुन।