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आ गई है प्रिय मिलन की रात / जनार्दन राय

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आ गयी है प्रिय मिलन की रात,
पा जिसे पुलकित हुआ है गात।
तुम गई जब से प्रिय तजकर वहाँ,
नींद आँखों में नहीं जाना यहाँ।
सोचते ही बीतती थी रात,
आ गई है प्रिय मिलन की रात।

दीप नभ में तारिकाओं के जले,
देख जिसको दिल हमेशा थे जले।
आज हंसता चाँद भी सुनकर तुम्हारी बात,
आ गयी है प्रिय मिलन की रात।

भाव की गंगा सदा बहती रही,
स्नेह की सरिता उमड़ती भी रही।
पर विरह ने आँख में लायी सदा बरसात,
आ गयी है प्रिय मिलन की रात।

जब गगन में बिजलियाँ छिटकी कभी,
याद आ जाती रही बातें सभी।
था बदलता करवटें आता न जब तक प्रात,
आ गयी है प्रिय मिलन की रात।

जब कभी लौटा थका निज काम से,
तोश पाया बस तुम्हारी याद से।
किन्तु कटती थी सदा दुख से सुहानी रात,
आ गयी है प्रिय मिलन की रात।

आगमन की सूचना जब से मिली,
जिन्दगी की बाग में कलियाँ खिली।
गुंजने तब से लगे संगीत के स्वर सात,
आ गयी है प्रिय मिलन की रात।

आ गई तुम स्वर्ग का ही सुख मिला,
था यही समझो सुमन घर में खिला।
रात काली भी बनी है पूर्णिमा की रात,
आ गयी है प्रिय मिलन की रात।

आ गयी है आज जीवन में बहार,
टूट जायेंगे सभी दुख के पहाड़।
और नित खिलता रहेगा स्नेह का जल जात,
आ गयी है प्रिय मिलन की रात।

-दिघबारा,
12.1.1963 ई.