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आ गए हैं उम्र की छाया में हम / अमरेन्द्र

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आ गए हैं उम्र की छाया में हम,
फिर मिलेंगे फिर नई काया में हम।

आँधियाँ जो कल तलक बाँहें बनी थीं
बिजलियाँ थीं दौड़तीं मेरी नसों में
सङ्गमरमर की शिला-सा वक्ष मेरा
तैरता था भावों के अनगिन रसों में,
सर झुकाए हैं प्रतीक्षा में सजा की
बँध गए जंजीर से, पाया में, हम।

पर तुम्हारे रूप का जादू अभी भी
प्राण में बैठे हैं गाता ठुमरियाँ
रेत-सा जीवन जला जो जेठ से
घेर लेती हैं सलेटी बदरियाँ
आज भी भर देतीं आँखों में चमक
कैसे कह दूँ थे पड़े माया में हम।