आ गया मधुमास / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

पल्लवों के श्वास से रस की महीन फुहार-
झर रही है, प्रकृति का होने लगा शृंगार।

विषम ज्वर, किसका चढ़ाने आ गया मधुमास?
फेंकता अनवरत जिसक ताप को आकाश।
उठ रहा किसके लिए उर में उदधि का ज्वार?
कौन-सा उन्माद जागा चिद्गमन के पार?

किया किसके रूप को मैंने जलन का दान?
हृदय आगे, चल रहे चुपचाप पीछे प्राणं
मदमुखर पिक की भणिति में भर लहर-झंकार,
भेजता सन्देश अपने कौन बारम्बार?

स्मरण में किसके न पाता मन कहीं विश्राम?
छोड़ देती साथ धृति, युग-कल्पसम क्षणयाम।
ढो रहा है भार किसका गन्धपवन उदार?
कामना की कसक से भर हृदय को सुकुमार।

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