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आ गयी फिर रामनवमी / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

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विगत स्मृतियाँ जगाती आ गयी फिर रामनवमी॥

चैत्र का मध्याह्न शीतल
छाँव जैसी बदोपहर।
रुक गयी गति भी समय की
गया क्या दिनकर ठहर ?

राम का आह्वान करती आ गयी फिर रामनवमी।
विगत स्मृतियाँ जगाती आ गयी फिर रामनवमी॥

फिर बढ़े कुविचार
जन जन बीच अत्याचार।
दानवों की शक्ति फिर
पाने लगी विस्तार।

आस्था मन में जगाती आ गयी फिर रामनवमी।
विगत स्मृतियाँ जगाती आ गयी फिर रामनवमी॥

मिट न पायेगा कभी भी
विगत का आदर्श।
सद्विचारों का यहाँ
होगा पुनः उत्कर्ष।

इसी स्वर में स्वर मिलाती आ गयी फिर रामनवमी।
विगत स्मृतियाँ जगाती आ गयी फिर रामनवमी॥