भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आ गयी होली / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
Kavita Kosh से
फिर लिये उल्लास नूतन आ गयी होली।
गीत गाती मोहती मन आ गयी होली।
नव गुलाबों पर गुलाली छा गयी अभिनव
कर रहे हैं भ्रमर गुंजन आ गयी होली।
तोड़ डाले मौन व्रत हैं कोयलों ने आज,
मुखर करती आम्र उपवन आ गयी होली।
तितलियों की टोलियाँ सजने लगी हैं अब
सजी सँवरी कली-सी बन आ गयी होली।
स्नेह का सद्भाव का मनुजत्व का कर ध्यान
बाँचती-सी मन्त्र पावन आ गयी होली।
बह चली मधुगन्ध पूरित वात है हर ओर
विहँसते घर द्वार आगन आ गयी होली।
अब न बासीपन किसी सम्बन्ध में लगता,
ताजगी का हुआ नर्तन आ गयी होली।