भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आ जा अब तो आ जा / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आ जा अब तो आ जा
मेरी क़िस्मत के ख़रीदार
अब तो आ जा..
नीलाम हो रही है
मेरी चाहत सर-ए-बाज़ार
अब तो आ जा..

सब ने लगाई बोली, ललचाई हर नज़र
मैं तेरी हो चुकी हूँ दुनिया है बेख़बर
ज़ालिम बड़े भोले हैं, मेरे ये तलबगार
अब तो आ जा...

हसरत भरी जवानी, ये हुस्न ये शबाब
रँगीन दिल की महफ़िल मेरे हसीन ख़्वाब
गोया कि मेरी दुनिया लुटने को है तैयार
अब तो आ जा...