आ जा री निंदिया आ जा (लोरी)
श्रीमति प्रतिभा सक्सेना द्वारा भेजी गई...
आ जा री निंदिया आ जा, मुनिया/मुन्ना को सुला जा
मुन्ना है शैतान हमारा
रूठ बितता है दिन सारा
हाट-बाट औ'अली-गली में नींद करे चट फेरी
शाम को आवे लाल सुलावे उड़ जा बड़ी सवेरी!
आ जा निंदिया आ जा तेरी मुनिया जोहे बाट
सोने के हैं पाए जिसके रूपे की है खाट
मखमल का है लाल बिछौना तकिया झालरदार
सवा लाख हैं मोती जिसमें लटकें लाल हज़ार!
आ जा री निंदिया आ जा!
नींद कहे मैं आती हूँ सँग में सपने लाती हूँ
निंदिया आवे निंदिया जाय, निंदिया बैठी घी-गुड़ खाय
भोर पंख ले के उड़ जाय!
वर्षा के मौसम में जुड़ जाता
पानी बरसे झम-झम कर, बिजली चमके चम-चम कर
भोर का जागा मुन्ना, मेरी गोद में सोवे बन-बन कर
निरख-निरख छवि तन-मन वारूँ लोर सुनाऊं चुन-चुन कर
आ जा री निंदिया...