भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आ जिंदगी तू आज मेरा कर हिसाब कर / आनंद कुमार द्विवेदी
Kavita Kosh से
आ जिंदगी तू आज मेरा कर हिसाब कर
या हर जबाब दे मुझे या लाजबाब कर
मैं इश्क करूंगा हज़ार बार करूंगा
तू जितना कर सके मेरा खाना खराब कर
या छीन ले नज़र कि कोई ख्वाब न पालूं
या एक काम कर कि मेरा सच ये ख्वाब कर
या मयकशी से मेरा कोई वास्ता न रख
या ऐसा नशा दे कि मुझे ही शराब कर
जा चाँद से कह दे कि मेरी छत से न गुजरे
या फिर उसे मेरी नज़र का माहताब कर
क्या जख्म था ये चाक जिगर कैसे बच गया
कर वक़्त की कटार पर तू और आब कर
खारों पे ही खिला किये है गुल, ये सच है तो
‘आनंद’ के लिए भी कोई तो गुलाब कर