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आ जी लें जी भर के / संजीव 'शशि'
Kavita Kosh से
पाना-खोना, हँसना-रोना।
जब जो होना तब सो होना।
पाँव धरें हम क्यों डर-डर के।
आ जी लें हर पल जी भर के।।
जी चाहे बस तुम्हें निहारूँ।
अपना सब कुछ तुम पर वारूँ।
जब तक साँसों की सरगम है।
बस तेरा ही नाम पुकारूँ।
आखिर क्या रक्खा है कल में।
पाना तुमको है इस पल में।
कौन भला फिर आया मुड़ के।
हमने जोड़ी पाई-पाई।
अंत समय कुछ काम न आयी।
ये तेरा ये मेरा करके।
हमने सारी उम्र बितायी.।
नयनों के यह स्वप्न रुपहले।
धन-दौलत ये महल-दोमहले।
सब तब तक जब तक दिल धड़के।
ये तन काम किसी के आये।
उसकी धुन में ही रम जाये।
पाप-पुण्य की परिभाषा क्या।
मेरा मन कुछ समझ न पाये।
याद किसी को हम भी आएँ।
चंद गीत ऐसे रच जाएँ।
कुछ ऐसा हम जाएँ करके।