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आ जैहो बड़ी भोर दही लैके / बुन्देली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आ जैहों बड़ी भोर दही लैकें
आ जैहों बड़ी भोर।
ना मानो कुंड़री धर राखो।
मुतियन जड़ी है कोर। सखी री...
ना मानो मटुकी धर राखो
लिखें पपीरा मोर। सखी री...
ना मानो गहने धर राखो,
बाजूबंद अमोल। सखी री...
ना मानो मोई खों बिलमा लो,
जोड़ी बनत अमोल। सखी री...
चन्द्रसखी रस बस भई राधा।
छलिया जुगल किशोर। सखी री...
आ जैहों...