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आ बैठ बात करां - 1 / रामस्वरूप किसान

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आ बैठ/बात करां
एक-दूजै ने देखां

कित्ता बरस बीतग्या
सागै रैंवतै थकां,
कित्ता नेड़ै-नड़ै रैया आपां

पण देख नीं सक्या-एक दूजै नै

झूठ नीं बोलूं
म्हैं तो नीं देख सक्यौ
थारी थूं जाणै

बरत्यौ अवस है
थारौ रूं-रूं
पण देख नीं सक्यौ
ठोड़ी रौ तिल/जकै रौ रंग
म्हारी अणदेखी रै अंधारै रळग्यौ

माफ करज्यौ
औसाण ईं नीं मिल्यौ
ए दांत कद टूटग्या थारा !
अर ए धोळा बाल ?
आ बैठ, गौर सूं देखूं थनै
कदे भाजौ-भाज में
आ जिनगाणी भाज नीं जावै।