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आ बैठ बात करां - 4 / रामस्वरूप किसान

आ बैठ/बात करां
लेण-देण रौ हिसाब काढां

स्यात भोत कीं
मांगै थूं म्हारैं में

जद-जद म्हैं टूट्यो
संबल रो सांधौ लगायौ

जद-जद म्हैं डिग्यौ
थूं थारौ खांदौ लगायौ

जद-जद
खाली हाथ
बा‘वड्यो म्हैं घरां
हांस‘र जेब में
हाथ मारयौ
थूं म्हारी
देखयो तो कविता लाधी
रिपियां सूं घणौं मान दियौ
थूं म्हारी कविता नै।

ठंडै चूल्है रै चौकै
गुमेज साथै बांचती रैयी थूं
म्हारी कविता बीच टाबरां
आ बैठ बात करां।