भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आ बैठ बात करां - 6 / रामस्वरूप किसान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आ बैठ/बात करां

हथाळी पर हथाळी मा‘र
खिलखिलावां
आमण-दूमणै खिणां री
मजाक उडावां

कंठ सूं कंठ मिला
कोई गीत उगेरां,
जीवन-राग अलापां
दो ई डग तो है
धरती आपणां
एक थूं भर
एक म्हैं
नापां

मौत रौ पूंछ पकड‘र
भूंवा बावळी !
ईं री सांकळ
ढीली करां,
दांत तोड़ां,
गाली फोड़ां
पछै जीवन री
ओखद भरां

आ बैठ/बात करां।