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आ बैठ बात करां - 7 / रामस्वरूप किसान
Kavita Kosh से
आ बैठ बात करां
हां,
थूं सोचती हुसी स्यात
कै रोज ई तो
करां हां बात
पण म्हैं सोचूं -
इत्ता दिन तो
अंधारौ ढ़ोयौ है
बात कठै करी
थूक बिलायौ है।
म्हनैं लागै -
पाणी पर
फूसकै ज्यूं
सरकती रैयी लारै
बखत पर तिरती
बा बात
अर आपां
पींवता रैया
नीतरेड़ो बखत
दिन-रात
आ, बातां रा
नुंवां बारणा खोलां
होठां रा किवाड़
मूंद बावळी !
काळजै सूं बोलां
जठै सामट्यौ पड़यौ है
सो कीं
ढ़ाई आखरां
आ बैठ/बात करां।