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आ सांस जिंयां / सांवर दइया
Kavita Kosh से
मन काचो क्यूं करै बावळी
अळगा हुयां ई ठा पड़ै
आपां कित्ता सागै हां
तूं किसी जाणै कोनी
सागै रैवै लोग
तो ई कित्ता अळगा हुवै
एक दूजै री सांस सूं
गळगळी हुयोडी है तो कांई
एकर मुळक परी
आ मुळक थारी : उजास म्हारै मारग रो
मोड़ै ऊभ विदा करतै
डाबर-नैणा री कोरा ठैरियोड़ै
पाणी री सौगन
म्हैं कठै ई रैवूं
तूं हरदम सागै हुवै म्हारै
सागै आ सांस जिंयां !