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इंक़िलाब / ख़ुर्शीद-उल-इस्लाम
Kavita Kosh से
वो कारवान-ए-गुल-ए-ताज़ा जिस के मुज़्दे से
दिमाग़-ए-इश्क़ मोअत्तर है और फ़ज़ा मामूर
दिलों से कितना क़रीं है नज़र से कितनी दूर