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इंतज़ार / रुचि बहुगुणा उनियाल
Kavita Kosh से
तुम आओ तो चप्पलें उतार के
अपने पैरों को पोछ लेना
तुम्हारे जाने के बाद से ही
समय ठहरा हुआ है...
तलुवों से समय की पीठ सहलाना
पायदान पर ही बैठ गया था
उकड़ूं हो कर इंतज़ार में तुम्हारे!