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इंतहा / रतन सिंह ढिल्लों

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इंतहा के आगे
और इंतहा
मुझे इतना ना सता
मुझे और न रुला

तू पहले भी थी बे-वफ़ा
तू आज भी है बे-वफ़ा
मुझे मिल गई है मुहब्बत की सज़ा ।
 
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला