भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इंद्रधनुष होना चाहता हूँ / कुँअर रवीन्द्र
Kavita Kosh से
बचे हुए रंगों में से
किसी एक रंग पर
उंगली रखने से डरता हूँ
में लाल. नीला केसरिया या हरा
नहीं होना चाहता
में इंद्रधनुष होना चाहता हूँ
धरती के इस छोर से
उस छोर तक फैला हुआ