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इंसान की उम्मीद के लटके देखो / रमेश तन्हा
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इंसान की उम्मीद के लटके देखो
देती है उसे क्या क्या झटके देखो
गर देखना हो गुल ये खिलाती है क्या
उम्मीद को उम्मीद से हटके देखो।