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इंसाफ़ / फ़रीद खान

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अगर लोग इंसाफ़ के लिए तैयार न हों ।
और नाइंसाफ़ी उनमें विजय भावना भरती हो ।
तो यक़ीन मानिए,
वे पराजित हैं मन के किसी कोने में ।
उनमें खोने का अहसास भरा है ।
वे बचाए रखने के लिए ही हो गए हैं अनुदार ।
उन्हें एक अच्छे वैद्य की ज़रूरत है ।

वे निर्लिप्त नहीं, निरपेक्ष नहीं,
पक्षधरता उन्हें ही रोक रही है ।
अहंकार जिन्हें जला रहा है ।
मेरी तेरी उसकी बात में जो उलझे हैं,
उन्हें ज़रूरत है एक अच्छे वैज्ञानिक की ।

हारे हुए लोगों के बीच ही आती है संस्कृति की खाल में नफ़रत ।
धर्म की खाल में राजनीति ।
देशभक्ति की खाल में सांप्रदायिकता ।
सीने में धधकता है उनके इतिहास ।
आँखों में जलता है लहू ।
उन्हें ज़रूरत है एक धर्म की ।

ऐसी घड़ी में इंसाफ़ एक नाज़ुक मसला है ।
देश को ज़रूरत है सच के प्रशिक्षण की ।