भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इकलखोरड़ो / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देख’र
खुलो झरोखो
बड़गी कमरै में
अचपळी पून
करै परदां रै गिदगिदी
बणावै कैलैन्डरां नै हिंडा
खिंडावै मैकती अगरबती रा झींटा
बैठो देखै एक टक
चांदड़ो मिनख
जको चनेक पैली
काढ दिया कूट ‘र
रमता टाबरां नै बारै !