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इक्कीसवीं सदी का प्रेम-गीत / सुशान्त सुप्रिय
Kavita Kosh से
ओ प्रिये
दिन किसी निर्जन द्वीप पर पड़ी
ख़ाली सीपियों-से
लगने लगे हैं
और रातें
एबोला वायरस के
रोगियों-सी
क्या आइनों में ही
कोई नुक्स आ गया है
कि समय की छवि
इतनी विकृत लगने लगी है?