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इक्कीसवीं सदी की लोरी / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
मम्मी तेरी तुझे सुलाये
सो जा मेरे लल्ला
मम्मी को भी नींद सताये
सो जा मेरे लल्ला
पूरे दिन
ऑफिस में थी मैं
चाँद नहीं ला पाई
तुझे देखने को मैं चन्दा
दौड़ी भागी आई
पीछे थे कुछ काले साये
सो जा मेरे लल्ला
परियों ने तो
बंद कर दिया
सपनों में भी आना
गूगल में कल ढूँढूँगी मैं
परियों वाला गाना
बिजली भी बस आये जाए
सो जा मेरे लल्ला
चाँदी की वो नाव
चुरा कर
चला गया है कोई
सातों बौने अब टीवी पर
करते किस्सागोई
रेशम झूला कौन झुलाए
सो जा मेरे लल्ला
मुझको है
ये पता
दूध तेरा आया पी जाए
लेकिन ख़ुद भूखी रहकर वह
कैसे तुझे खिलाये
मम्मी कैसे उसे भगाए
सो जा मेरे लल्ला
मम्मी तेरी तुझे सुलाये
सो जा मेरे लल्ला