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इक्कीसवीं सदी के लुटेरे / राग तेलंग

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आज लुटेरे उच्च शिक्षित हैं
लैस हैं आधुनिकतम तकनालॉजी के उपकरणों से
और दूसरे लुटेरे गिरोहों के साथ लामबद्ध हैं
कुल मिलाकर बड़े पैमाने पर संगठित हैं
वे कानून का इस्तेमाल जानते हैं
इसीलिए उनके पास पाले हुए कानूनविद् हैं
धर्म और धर्माचार्यों को,खुली छूट देते हुए,अपनी जेब में रखे घूमते हैं
वे दबे पाँव आते हैं विज्ञापनों के पीछे से आपके ज़ेहन में

आपके सामने उनका भाषा के साथ बर्ताव
इतना सौम्य है कि आप बिछ-बिछ जाएंगे उनके सामने लुटने को

उनके लैपटॉप में दर्ज हैं तमाम लुटे हुए लोगों के आँकड़े
उन्हें मालूम है और चूसे जाने के लिए
कितना ख़ून बाकी है जनता में
किस हद तक जाकर अभी लूटते रहना है उन्हें

वे शिकारी हैं उस जंगल के,जहाँ शिकार भागते हुए
जहाँ-जहाँ महसूस करता है सुरक्षित
वहां ठीक ऊपर से साधा जाता है निशाना

अब लुटेरे मिलजुलकर रहते हैं
उनके संगठन हैं, समाज हैं
वे बाकायदा चुनाव लड़ते हैं
उनकी ताजपोशी होती है
वे मंच से धन्यवाद ज्ञापित करते हैं
यह कहकर कि मैं आप लोगों की बेहतरी के लिए
लूट तंत्र को और मजबूत बनाऊंगा और
लूटे माल में बनाऊंगा आपको बराबर का भागीदार
यह सुनकर औरों के स्वर में स्वर मिलाकर
आप भी ताली बजाते हैं
क्या आपको ध्यान आया ?