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इक-दूजे से दूर कभी वह रह न सके / दरवेश भारती

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इक-दूजे से दूर कभी वह रह न सके
ज़िन्दा मौत-सा दर्दे-जुदाई सह न सके

इससे बढ़कर ज़ब्त किसी में क्या होगा
आये किसी की याद इक आँसू बह न सके

कंगाली ने की तो बहुत कोशिश, लेकिन
दौलत के मज़बूत महल थे, ढह न सके

ज़िन्दादिलों की ज़िन्दादिली ने ऐसा किया
प्यार के दुश्मनों के शोलों में दह न सके

टीस रहेगी दिल में यही ता-दम ' दरवेश
तुमसे जो कहना था उसी को कह न सके