भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इक-दूजे से दूर कभी वह रह न सके / दरवेश भारती
Kavita Kosh से
इक-दूजे से दूर कभी वह रह न सके
ज़िन्दा मौत-सा दर्दे-जुदाई सह न सके
इससे बढ़कर ज़ब्त किसी में क्या होगा
आये किसी की याद इक आँसू बह न सके
कंगाली ने की तो बहुत कोशिश, लेकिन
दौलत के मज़बूत महल थे, ढह न सके
ज़िन्दादिलों की ज़िन्दादिली ने ऐसा किया
प्यार के दुश्मनों के शोलों में दह न सके
टीस रहेगी दिल में यही ता-दम ' दरवेश
तुमसे जो कहना था उसी को कह न सके