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इक अनजान हुआ बेघर है / रंजना वर्मा

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इक अनजान हुआ बेघर है
तनहाई का अजब असर है

रत्न नहीं पहचान सका जो
वो कहता केवल पत्थर है

मौत न उसके पास फटकती
जिसे नहीं दुनियाँ का डर है

हो न अगर विश्वास हृदय में
आज दुआ से वह बाहर है

बाँह पकड़ कर भाई कहता
पीछे हाथों में ख़ंजर है

हँसना रोना खेल तमाशा
ऊपर वाला बाजीगर है

दुनियाँ की जो लिखे कहानी
जग कहता उस को ईश्वर है