भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इक इक करके सबने ही मुंह मोड़ लिया / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
इक इक करके सबने ही मुंह मोड़ लिया
इस दुनिया से अपना नाता तोड़ लिया
जहाँ से लौट के आना भी है नामुमकिन
ऐसे जग से अपना रिश्ता जोड़ लिया
जिस्म लगे बेजान मगर हम जीते हैँ
हम से सब ख़ुशियों ने रिश्ता तोड़ लिया
पत्थर तो बदनाम बहुत है ज़ख्मो मे
हमने तो शीशे से ही सर फोड़ लिया
घुट घुट कर आंसू की बूँदें पीते है
क़तरों ने नदियां से रिश्ता जोड़ लिया
जब तक न टूटे सांसों डोर सिया
मैंने राम के नाम से रिश्ता जोड़ लिया