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इक इक को इताब बाँटते हो / परवीन फ़ना सय्यद
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इक इक को इताब बाँटते हो
किस तरह के ख़्वाब बाँटते हो
हर चेहरे पे झुर्रियाँ लिखी हैं
तुम कैसा शबाब बाँटते हो
फ़िरदौस तुम्हारे हाथ में है
बंदों को अज़ाब बाँटते हो
इक एक कली का रंग फ़क़ है
ये कैसे गुलाब बाँटते हो
आँखों में तो रतजगे लिखे हैं
तुम समझे कि ख़्वाब बाँटते हो