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इक ऐसा वक्त भी सहरा में आने वाला है / शहबाज़ ख्वाज़ा

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इक ऐसा वक्त भी सहरा में आने वाला है
कि रास्ता यहाँ दरिया बनाने वाला है

वो तीरगी है कि छटती नहीं किसी सूरत
चराग़ अब के लहू से जलाने वाला है

तुम्हारे हाथ से तरशा हुआ वजूद हूँ मैं
तुम्ही बताओ ये रिश्ता भुलाने वाला है

अभी ख़याल तिरे लम्स तक नहीं पहुँचा
अभी कुछ और ये मंज़र बनाने वाला है

बुझे बुझे से ख़द-ओ-ख़ाल पर न जा ‘शहबाज़’
यही उ़फुक़ है जो सूरज उगाने वाला है।