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इक और सुब्ह / इमरोज़ / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
तेरे ख्यालों संग रात भर जागती रही
और सुब्ह होने से पहले इक और सुब्ह देखती रही
मिलूंगी उससे और जाग कर देखूंगी उसे
उसके ख्यालों को भी .
जब मिली...
देखते ही कहने लगा
तुझे उडीक-उडीक कर
देख मैं क्या से क्या हो गया हूँ
तुम मुझे कब के जानते हो?
जब से मैं अपने आपको जानता हूँ
ठीक है फिर नहीं जाऊँगी कहीं
इक बार माँ जनती है
और दूसरी बार मुहब्बत
देख आज मेरा जन्मदिन है
सिर्फ तेरे साथ मनाने वाला
फिर तो आज मेरा भी जन्मदिन हो गया...
चल मिलकर मनाएं
यह दो जनों का एक ही जन्मदिन
तेरे ख्यालों संग भी
मेरे ख्यालों संग भी
सारी रात इक -दूजे संग जागकर
देखेंगे सुब्ह होने से पहले
हो रही इक और सुब्ह तेरी मेरी सुब्ह...