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इक खिलौने-सा वो उठाएगा / प्रेमरंजन अनिमेष
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इक खिलौने सा वो उठाएगा
तोड़ कर फिर मुझे बनाएगा
रात आधी है आ गया उठ कर
मुझको बिखरा के फिर सजाएगा
अपने पीछे वो दर्द रखता जा
जो जगाएगा और सुलाएगा
तुझपे मरता हूँ क्यूँ मेरे क़ातिल
जान लेकर न जान पाएगा
वो जो होंठों से था कहीं छूटा
अपनी पलकों पे अब उठाएगा
दूर के देस याद की चादर
कोई ओढ़ेगा और बिछाएगा
इक मुहब्बत का दर्द है काफ़ी
फिर क्यूँ दामन कोई बढ़ाएगा
साँस रोके हुए हैं सन्नाटे
कोई 'अनिमेष' अब तो आएगा