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इक खेत की फ़सल हैं / ब्रजमोहन
Kavita Kosh से
तू और मैं तो भाई इक खेत की फ़सल हैं
कन्धों पर तेरे-मेरे इक जैसे ही तो हल हैं ...
तू मेरा घर जलाए या मैं जलाऊँ तेरा
अपनी ही बस्तियों में होना है सब अन्धेरा
इक आग की लपट हम इक झील के कँवल हैं ...
वो कौन है जो हम को दुश्मन बनाए जाता
ताक़त को जो हमारी दीमक-सा खाए जाता
आँखों में किसकी जंगल औ’ भेड़ियों के छल हैं ...
अपनी हँसी-ख़ुशी और सुख-दुख हैं एक जैसे
हम एक-दूसरे के दुश्मन हैं भला कैसे
दुनिया के बाजुओं का मैं और तू ही बल हैं ...