इक ग़ज़ल क्या गा दिये मशहूर हो गये।
तालियों से महफिलें भरपूर हो गये।।
ज़िंदगी की हर घड़ी का लुफ्त लीजिये।
खा गये बीबी कसम मजबूर हो गये।।
बँट गये हैं भाइयों में घर मकान भी।
सब जमीनें एकड़ों से धूर हो गये।।
रस्सियाँ तो जल गई ऐंठन गई कहाँ।
आज साथी ही सभी के नूर हो गये।।
हाँफते हैं दूसरों के खेत में वही।
बाप बूढ़े हो चले तो दूर हो गये।।