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इक ज़रा-सी असावधानी से / शिव ओम अम्बर
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इक ज़रा-सी असावधानी से,
आइना टूटकर बिखरता है।
वो दहकते सवाल करती है,
गाँवभर उस नज़र से डरता है।
स्वर्ण हो वो कि आदमी कोई,
अग्नि में स्नान कर निखरता है।
नीति का अर्थ हो नियम-निष्ठा,
प्रीति का अर्थ पक्षधरता है।
मैं भले ही उसे भुला बैठूँ,
वो मेरा इन्तज़ार करता है।